ये त्रासदी ऐसी है कि खुद बन जाईये सरकार

    0

    रवि प्रकाश: इस दुनिया में शिकायती लालों की संख्‍या बहुत है. सबकी शिकायतें अलग-अलग हैं. इन शिकायतों में एक चीज कॉमन है कि ये खुद कुछ नहीं करना चाहते मगर दूसरों से काफी अपेक्षाएं रखते हैं. ये दूसरा कोई भी हो सकता है, कभी कोई खास व्‍यक्ति भी हो सकता है तो कभी सरकार होती है. इनको अपने अधिकारों का पूरा ज्ञान होता है, मगर कर्तव्‍य का पाठ ये कभी पढ़ते ही नहीं हैं. बगैर कर्तव्‍यों का ज्ञान हुए अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले शिकायती लाल हमें हर घर, हर चौराहे पर मिलते हैं और एक ही रोना रोते दिखते हैं कि सर‍कार कुछ कर नहीं रही है.

    कभी खुद से भी सवाल पूछिए कि आप क्‍या कर रहे हैं. त्रासदी के इस दौर में खुद को संभालने के साथ-साथ आप दूसरों के संभले रहने में क्‍या और किस तरह की मदद कर रहे हैं. हम सभी लोगों को खासकर उन शिकायती लालों को अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए कि लॉक डाउन की इस अवधि में व्‍यक्तिगत स्‍तर पर हमने कितने लेगों की मदद की है. कुछ लोगों के पास इसका जवाब होगा, लेकिन बहुत सारे लोगों के पास नहीं होगा. ये ऐसे लोग हैं जो सबकुछ सरकार के भरोसे छोड़कर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं.

    एक बात हमेशा ध्‍यान में रखनी चाहिए कि अ (गैर) सरकारी कार्य ज्‍यादा असरकारी होते हैं. आज आपको कुछ ऐसे लोगों से रू-ब-रू कराता हूं, जो पिछले 75 दिनों से अपनी परवाह किए बगैर लोगों की सेवा में जुटे हुए हैं. ऐसे लोगों में सोनू सूद, जबलपुर के दुर्गेश शाह और धीरज पटेरिया का नाम वैयक्तिक सेवा में उल्‍लेखनीय है. ये एक व्‍यक्ति विशेष होकर इन दोनों ने उन कार्यों को क्रियान्वित किया जो काम सरकार को करना चाहिए था. सोनू सूद सिनेमा से जुड़े व्‍यक्ति हैं, इसलिए हर कोई उनके विषय में जान गया. दुर्गेश शाह और धीरज पटरैया सामान्‍य लोगों में से आते हैं, इसलिए उनके विषय में कम लोगों को पता है. दुर्गेश शाह ने अपनी शुरूआत भोजन उपलब्‍ध कराने से की और लौक डाउन खत्‍म होते होते तक पश्चिम बंगाल और सिक्किम के अप्रवासी भारतीयों को उनके घर भेजने के लिए बस की व्‍यवस्‍था तक की. दुर्गेश ने जो कुछ भी किया अपने संचित धन से किया. एक आम आदमी की तरह दुर्गेश को भी इस बात की चिन्‍ता होनी चाहिए थी कि यह संचित धन भविष्‍य में उसके काम आएंगे. मगर उसने इस धन का उपयोग जरूरतमंदों के लिए किया.

    जबलपुर के अमित चतुर्वेदी धीरज पटेरिया के बारे में बताते हैं कि धीरज पटेरिया को सोनू सूद जैसा कहें या सोनू सूद को धीरज पटेरिया जैसा कहें, ये आपके ऊपर है लेकिन धीरज पटेरिया सोनू सूद से बस इस मामले में अलग हैं कि सोनू के कारनामे के बारे में सबको पता है लेकिन धीरज पटेरिया चुपचाप काम कर रहे हैं और पहले दिन से कर रहे हैं.

    धीरज पटेरिया इस मामले में भी अलग हैं क्यूँकि धीरज अपने पूरे जीवनकाल में कभी किसी लाभ के पद पर नहीं रहे, लेकिन लॉक्डाउन 1 के पहले हफ़्ते से शुरू हुआ धीरज पटेरिया के सेवा कार्य में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई. ये उनके मित्रों, उनके समर्थकों और उन्हें चाहने वाले युवा शक्ति की ताक़त है जो आज भी उनके इस यज्ञ को जारी रखे है. आज जब खुद सरकार ने अपनी कई जनता रसोईयाँ बंद कर दीं, बहुत से करोड़पति अरबपति जनसेवक हार मन गए तब भी धीरज पटेरिया अपने चाहने वालों के साथ रोज़ गरीब और मलिन बस्तियों में दरिद्र नारायण की सेवा में उन्हें ख़ाना खिलाने और हर सम्भव मदद पहुँचाने में लगे हुए हैं.

    धीरज के पास न तो अपना कोई बैंक बैलेंस है, न कोई अन्य चल अचल सम्पत्तियाँ हैं, धीरज को ईश्वर ने दिया है एक बहुत बड़ा दिल और उन्हें चाहने वाले हज़ारों लोगों की फ़ौज जिनका वो कोई फ़ायदा नहीं करा सकते लेकिन फिर भी वो पूरी ताक़त से उनके साथ खड़े रहते हैं क्यूँकि उन्हें पता है कि इस दौर में भी एक सोने के दिल वाला आदमी उनके पास है.

    Advertisement